नमस्कार व शुभप्रभात...
मैं कुलदीप ठाकुर एक बार फिर हाज़िर हूं ब्लौग प्रसारण का एक और अंक लेकर...
उमीद है आप को मेरे चयनित लिंक अवश्य पसंद आयेंगे...
इस विश्वास के साथ पेश है ब्लौग प्रसारण अंक 157...
----नदियाँ संस्कृति की माँ हैं
------
भारत भू की गरिमा हैं
जन-जन की आस्था उनमे
स्वयं प्रकृति की महिमा ये,
आओ अब संकल्प करें,
नदियों का संताप हरें,
बारह माह प्रवाह रहे
जीवन मे उत्साह रहे
---- राहें बदल गई मंजर बदल गए,
----
अफ़सोस है की नाज़िर की फितरत बदल गयी! कृष्ण
जिस्म के कारोबार में रूहे भी बदल गयी,
शक्ल तो मौजूं है, सीरत बदल गयी
अब बात आती है कि इस समस्या को दूर कैसे किया जाये, आईये जानते हैं कैसे दूर की जाये हिन्दी टाइपिंग की यह समस्या -
वर्ड आप्शन विण्डो ओपन हो जायेगी। यहॉ Proofing पर क्लिक कीजिये और Auto correct Options पर जाईये।
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
आतंकवादी या उग्रवादी कोई पैदाइशी नहीं होता किसी बदले कि आग का परिणाम है आतंकवाद या उग्रवाद. लोग कहते हैं कि पानी की एक पतली तेज धार जब स्टील की परत काट
सकती है तो बस यही बात यहाँ भी लागु होती है. ऐसे ही मन में अंगारे लिए किसी युवा को जब हथियारों का साथ और दहशतगर्दों की पनाह मिल जाती है तो वो मर कर भी तबाही
फैला जाना चाहता है और मरने-मारने को हमेशा तयार होता है. क्योंकि आतंकवाद और उग्रवाद बस एक हरे हुए इंसान की ही कहानी होती है
किसी ने ठीक ही कहा है कि अपने अपने ही होते हैं और पराये पराये. तो मेरी मुँह बोली बहन ने भी, जिसे मैं प्यार से अक्सर
चीनी वाली बहन से संबोधित करता था, आखिर ये अहसास दिलवा ही दिया कि वो पराई बहन थी. सगी होती तो क्या ऐसा व्यवहार करती
जिसकी ईंट ईंट पर
लगने वाला
नया रंग रोगन भी
भुला न पाएगा
बीते कल की
अमिट खुशबू को।
तुम उम्र हमारी , यूँ पहचान न पाओगी ,
मैं मरे हुए सपने , जवान कर सकता हूँ !
निश्छल दिल लेकर,इस बस्ती में जन्मा हूँ
तुम प्यार के गीत सुनाओ,तो रो सकता हूँ
मैं थी तुम्हारे सामने ,
घेरदार,घुमावदार,ज़मीन को छूता हुआ,
लाल,बेहद आकर्षक सा विलायती गाउन पहने हुए,
और तुम भी तो जँच रहे थे
काले रंग के विलायती कोट-पेंट में ......लग रही थी बिलकुल शाही जोड़ी
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
संग बैठे थे कभी गाये थे मिलकर प्रीत के गीत
सब सुंदर जग सुहाना था ,जब तुम थे मेरे मीत/
कभी आँचल में तेरे गुज़ारे थे हमने दिन और रात
आज भी है खुश्बू का अहसास,तब मीठी थी हर बात/
कल तलक थे साथ ,जिसके आज उससे दूर हैं
सेक्युलर कम्युनल का ऐसा घालमेल देखिये
हो गए कैसे चलन अब आजकल गुरूओं के यार
मिलते नहीं बह आश्रम में ,अब जेल देखिये
सोच में पड़ा हूँ
अब तुम्हें
और क्या संबोधन दूं
अब तुमसे
और क्या कहूं
हमें भी जनता के साहित्य और जनता के साहित्यकारों की शानदार परम्परा को विस्मृत कर दिये जाने के विरुद्ध लड़ना होगा। हमें लिखने को लड़ने का अंग बनाना होगा
और इसमें निहित सारी परेशानियाँ, सारे जोखिम उठाने होंगे। मुक्ति स्वप्नों के इन्द्रधनुष को विस्मृति में खोने से भी बचाना होगा और विकृतिकरण की कोशिशों
से भी। सृजन-कर्म की एकमात्र यही सार्थकता हो सकती है।
हर भाषण की चूक, हूक गांधी के दिल में |
मार राख पर फूंक, लगाते लौ मंजिल में |
*कसंग्रेस भी आज, करें दंगों का धंधा |
मत दे मत-तलवार, बनेगा बन्दर अन्धा ||
आज बस इतना ही...ब्लौग प्रसारण को हम कैसे बेहतर बना सकते हैं... आप सबों के सुझाव blogprasaran@gmail.com पर आमंत्रित हैं... धन्यवाद...
मैं कुलदीप ठाकुर एक बार फिर हाज़िर हूं ब्लौग प्रसारण का एक और अंक लेकर...
उमीद है आप को मेरे चयनित लिंक अवश्य पसंद आयेंगे...
इस विश्वास के साथ पेश है ब्लौग प्रसारण अंक 157...
----नदियाँ संस्कृति की माँ हैं
------
भारत भू की गरिमा हैं
जन-जन की आस्था उनमे
स्वयं प्रकृति की महिमा ये,
आओ अब संकल्प करें,
नदियों का संताप हरें,
बारह माह प्रवाह रहे
जीवन मे उत्साह रहे
---- राहें बदल गई मंजर बदल गए,
----
अफ़सोस है की नाज़िर की फितरत बदल गयी! कृष्ण
जिस्म के कारोबार में रूहे भी बदल गयी,
शक्ल तो मौजूं है, सीरत बदल गयी
अब बात आती है कि इस समस्या को दूर कैसे किया जाये, आईये जानते हैं कैसे दूर की जाये हिन्दी टाइपिंग की यह समस्या -
वर्ड आप्शन विण्डो ओपन हो जायेगी। यहॉ Proofing पर क्लिक कीजिये और Auto correct Options पर जाईये।
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
आतंकवादी या उग्रवादी कोई पैदाइशी नहीं होता किसी बदले कि आग का परिणाम है आतंकवाद या उग्रवाद. लोग कहते हैं कि पानी की एक पतली तेज धार जब स्टील की परत काट
सकती है तो बस यही बात यहाँ भी लागु होती है. ऐसे ही मन में अंगारे लिए किसी युवा को जब हथियारों का साथ और दहशतगर्दों की पनाह मिल जाती है तो वो मर कर भी तबाही
फैला जाना चाहता है और मरने-मारने को हमेशा तयार होता है. क्योंकि आतंकवाद और उग्रवाद बस एक हरे हुए इंसान की ही कहानी होती है
किसी ने ठीक ही कहा है कि अपने अपने ही होते हैं और पराये पराये. तो मेरी मुँह बोली बहन ने भी, जिसे मैं प्यार से अक्सर
चीनी वाली बहन से संबोधित करता था, आखिर ये अहसास दिलवा ही दिया कि वो पराई बहन थी. सगी होती तो क्या ऐसा व्यवहार करती
जिसकी ईंट ईंट पर
लगने वाला
नया रंग रोगन भी
भुला न पाएगा
बीते कल की
अमिट खुशबू को।
तुम उम्र हमारी , यूँ पहचान न पाओगी ,
मैं मरे हुए सपने , जवान कर सकता हूँ !
निश्छल दिल लेकर,इस बस्ती में जन्मा हूँ
तुम प्यार के गीत सुनाओ,तो रो सकता हूँ
मैं थी तुम्हारे सामने ,
घेरदार,घुमावदार,ज़मीन को छूता हुआ,
लाल,बेहद आकर्षक सा विलायती गाउन पहने हुए,
और तुम भी तो जँच रहे थे
काले रंग के विलायती कोट-पेंट में ......लग रही थी बिलकुल शाही जोड़ी
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
संग बैठे थे कभी गाये थे मिलकर प्रीत के गीत
सब सुंदर जग सुहाना था ,जब तुम थे मेरे मीत/
कभी आँचल में तेरे गुज़ारे थे हमने दिन और रात
आज भी है खुश्बू का अहसास,तब मीठी थी हर बात/
कल तलक थे साथ ,जिसके आज उससे दूर हैं
सेक्युलर कम्युनल का ऐसा घालमेल देखिये
हो गए कैसे चलन अब आजकल गुरूओं के यार
मिलते नहीं बह आश्रम में ,अब जेल देखिये
सोच में पड़ा हूँ
अब तुम्हें
और क्या संबोधन दूं
अब तुमसे
और क्या कहूं
हमें भी जनता के साहित्य और जनता के साहित्यकारों की शानदार परम्परा को विस्मृत कर दिये जाने के विरुद्ध लड़ना होगा। हमें लिखने को लड़ने का अंग बनाना होगा
और इसमें निहित सारी परेशानियाँ, सारे जोखिम उठाने होंगे। मुक्ति स्वप्नों के इन्द्रधनुष को विस्मृति में खोने से भी बचाना होगा और विकृतिकरण की कोशिशों
से भी। सृजन-कर्म की एकमात्र यही सार्थकता हो सकती है।
हर भाषण की चूक, हूक गांधी के दिल में |
मार राख पर फूंक, लगाते लौ मंजिल में |
*कसंग्रेस भी आज, करें दंगों का धंधा |
मत दे मत-तलवार, बनेगा बन्दर अन्धा ||
आज बस इतना ही...ब्लौग प्रसारण को हम कैसे बेहतर बना सकते हैं... आप सबों के सुझाव blogprasaran@gmail.com पर आमंत्रित हैं... धन्यवाद...
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
बहुत ही सुन्दर लिंकों का संग्रह , आभार .. साथ ही मेरी पोस्ट को स्थान देने का धन्यवाद.
ReplyDeleteसुंदर संयोजन !
ReplyDeleteअत्यन्त रोचक व पठनीय सूत्र..
ReplyDeletebahut sundar parsaran ,,mere blog ko bhi shamil kijiye/
ReplyDeletehttp://iwillrocknow.blogspot.in/
सुंदर लिंकों के चयन के साथ अति उत्तम प्रसारण.आभार.
ReplyDeleteसुंदर लिंक्स संयोजन एवं प्रस्तुति.
ReplyDeleteBahut khub
ReplyDelete