नमस्कार , मैं नीरज कुमार नीर उपस्थित
हूँ ब्लॉग प्रसारण के सोमवारीय अंक के साथ आपके लिए प्रस्तुत हैं
मेरे द्वारा चुने हुए कुछ लिंक्स . पढ़िए और कमेंट्स के द्वारा अपनी
पसंद नापसंद अवश्य बताइए . नए ब्लॉगर से जिन्हें अपने ब्लॉग पर
पाठकों की संख्या बढ़ानी है , खास अनुरोध है कि आप अगर दूसरों को
पढेंगे और कमेंट्स देंगे तो ही लोग आपके ब्लॉग के बारे में जानेंगे
..
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बचपन, भाषा, देशप्रवीण पाण्डेय |
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स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँताना बाना है जीवन का ......भुवन की कलाकृति ....आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं .....अनंत स्मिति.... |
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सपना और मैं |
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हेलोवीन का वैश्विक स्वरूप |
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जय, जय, जय शोभन सरकारआने वाले हैं अब चुनाव,कहां है सौना मुझे बताओ,कृपा करो मुझ पर अब,जय, जय, जय शोभन सरकार... |
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मुझे तेरा प्यार याद हैमानव हैं तोसमय को तो पढ़ ही लेंगेमानव हैं तोदिशा को पहचान ही लेंगेकिया है प्रयास कई बार |
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मेरी बददुआ |
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अम्मामिनाक्षी मिश्रा तिवारी की कहानी |
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आवो हर दिल में दीप जलाएंलड्डू,बर्फी,काजू-कतली,ड्राई फ्रूट्स व मेवा होगा ।तरह-तरह के उपहारों का,खुब लेना-देना होगा ॥
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ब्लॉग प्रसारण पर आप सभी का हार्दिक स्वागत है !!!!
ब्लॉग प्रसारण का उद्देश्य पाठकों तक विभिन्न प्रकार की रचनाएँ पहुँचाना एवं रचनाकारों से परिचय करवाना है. किसी प्रकार की समस्या एवं सुझाव के लिए इस पते पर लिखें. blogprasaran@gmail.com
Monday, October 28, 2013
ब्लॉग प्रसारण: सोमवारीय अंक
Sunday, October 27, 2013
रविवार, 27 अक्तूबर 2013
ब्लॉग प्रसारण - 158
नमस्कार मित्रो,
ब्लॉग प्रसारण का रविवासरीय अंक लेकर मैं, शालिनी रस्तोगी, फिर आपके समक्ष उपस्थित हूँ ..और इस अंक में प्रस्तुत हैं आज के कुछ चुनिन्दा सूत्र ...
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नितीश तिवारी
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अपर्णा बोस
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डॉ. सुनील जाधव
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डॉ. मान्धाता सिंह
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साहित्य और समीक्षा
डॉ. विजय शिंदे
निहार रंजन
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रमा अजय
जय भारद्वाज
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वंदना गुप्ता *************************************************
इसके साथ ही मुझे इजाजत दीजिए ... अगले रविवार तक के लिए
शुभ दिन .. शुभ समय !
Saturday, October 26, 2013
आज का प्रसारण...लोकतंत्र होता है गुलाब
नमस्कार व शुभप्रभात...
मैं कुलदीप ठाकुर एक बार फिर हाज़िर हूं ब्लौग प्रसारण का एक और अंक लेकर...
उमीद है आप को मेरे चयनित लिंक अवश्य पसंद आयेंगे...
इस विश्वास के साथ पेश है ब्लौग प्रसारण अंक 157...
----नदियाँ संस्कृति की माँ हैं
------
भारत भू की गरिमा हैं
जन-जन की आस्था उनमे
स्वयं प्रकृति की महिमा ये,
आओ अब संकल्प करें,
नदियों का संताप हरें,
बारह माह प्रवाह रहे
जीवन मे उत्साह रहे
---- राहें बदल गई मंजर बदल गए,
----
अफ़सोस है की नाज़िर की फितरत बदल गयी! कृष्ण
जिस्म के कारोबार में रूहे भी बदल गयी,
शक्ल तो मौजूं है, सीरत बदल गयी
अब बात आती है कि इस समस्या को दूर कैसे किया जाये, आईये जानते हैं कैसे दूर की जाये हिन्दी टाइपिंग की यह समस्या -
वर्ड आप्शन विण्डो ओपन हो जायेगी। यहॉ Proofing पर क्लिक कीजिये और Auto correct Options पर जाईये।
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
आतंकवादी या उग्रवादी कोई पैदाइशी नहीं होता किसी बदले कि आग का परिणाम है आतंकवाद या उग्रवाद. लोग कहते हैं कि पानी की एक पतली तेज धार जब स्टील की परत काट
सकती है तो बस यही बात यहाँ भी लागु होती है. ऐसे ही मन में अंगारे लिए किसी युवा को जब हथियारों का साथ और दहशतगर्दों की पनाह मिल जाती है तो वो मर कर भी तबाही
फैला जाना चाहता है और मरने-मारने को हमेशा तयार होता है. क्योंकि आतंकवाद और उग्रवाद बस एक हरे हुए इंसान की ही कहानी होती है
किसी ने ठीक ही कहा है कि अपने अपने ही होते हैं और पराये पराये. तो मेरी मुँह बोली बहन ने भी, जिसे मैं प्यार से अक्सर
चीनी वाली बहन से संबोधित करता था, आखिर ये अहसास दिलवा ही दिया कि वो पराई बहन थी. सगी होती तो क्या ऐसा व्यवहार करती
जिसकी ईंट ईंट पर
लगने वाला
नया रंग रोगन भी
भुला न पाएगा
बीते कल की
अमिट खुशबू को।
तुम उम्र हमारी , यूँ पहचान न पाओगी ,
मैं मरे हुए सपने , जवान कर सकता हूँ !
निश्छल दिल लेकर,इस बस्ती में जन्मा हूँ
तुम प्यार के गीत सुनाओ,तो रो सकता हूँ
मैं थी तुम्हारे सामने ,
घेरदार,घुमावदार,ज़मीन को छूता हुआ,
लाल,बेहद आकर्षक सा विलायती गाउन पहने हुए,
और तुम भी तो जँच रहे थे
काले रंग के विलायती कोट-पेंट में ......लग रही थी बिलकुल शाही जोड़ी
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
संग बैठे थे कभी गाये थे मिलकर प्रीत के गीत
सब सुंदर जग सुहाना था ,जब तुम थे मेरे मीत/
कभी आँचल में तेरे गुज़ारे थे हमने दिन और रात
आज भी है खुश्बू का अहसास,तब मीठी थी हर बात/
कल तलक थे साथ ,जिसके आज उससे दूर हैं
सेक्युलर कम्युनल का ऐसा घालमेल देखिये
हो गए कैसे चलन अब आजकल गुरूओं के यार
मिलते नहीं बह आश्रम में ,अब जेल देखिये
सोच में पड़ा हूँ
अब तुम्हें
और क्या संबोधन दूं
अब तुमसे
और क्या कहूं
हमें भी जनता के साहित्य और जनता के साहित्यकारों की शानदार परम्परा को विस्मृत कर दिये जाने के विरुद्ध लड़ना होगा। हमें लिखने को लड़ने का अंग बनाना होगा
और इसमें निहित सारी परेशानियाँ, सारे जोखिम उठाने होंगे। मुक्ति स्वप्नों के इन्द्रधनुष को विस्मृति में खोने से भी बचाना होगा और विकृतिकरण की कोशिशों
से भी। सृजन-कर्म की एकमात्र यही सार्थकता हो सकती है।
हर भाषण की चूक, हूक गांधी के दिल में |
मार राख पर फूंक, लगाते लौ मंजिल में |
*कसंग्रेस भी आज, करें दंगों का धंधा |
मत दे मत-तलवार, बनेगा बन्दर अन्धा ||
आज बस इतना ही...ब्लौग प्रसारण को हम कैसे बेहतर बना सकते हैं... आप सबों के सुझाव blogprasaran@gmail.com पर आमंत्रित हैं... धन्यवाद...
मैं कुलदीप ठाकुर एक बार फिर हाज़िर हूं ब्लौग प्रसारण का एक और अंक लेकर...
उमीद है आप को मेरे चयनित लिंक अवश्य पसंद आयेंगे...
इस विश्वास के साथ पेश है ब्लौग प्रसारण अंक 157...
----नदियाँ संस्कृति की माँ हैं
------
भारत भू की गरिमा हैं
जन-जन की आस्था उनमे
स्वयं प्रकृति की महिमा ये,
आओ अब संकल्प करें,
नदियों का संताप हरें,
बारह माह प्रवाह रहे
जीवन मे उत्साह रहे
---- राहें बदल गई मंजर बदल गए,
----
अफ़सोस है की नाज़िर की फितरत बदल गयी! कृष्ण
जिस्म के कारोबार में रूहे भी बदल गयी,
शक्ल तो मौजूं है, सीरत बदल गयी
अब बात आती है कि इस समस्या को दूर कैसे किया जाये, आईये जानते हैं कैसे दूर की जाये हिन्दी टाइपिंग की यह समस्या -
वर्ड आप्शन विण्डो ओपन हो जायेगी। यहॉ Proofing पर क्लिक कीजिये और Auto correct Options पर जाईये।
चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है
बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...
आतंकवादी या उग्रवादी कोई पैदाइशी नहीं होता किसी बदले कि आग का परिणाम है आतंकवाद या उग्रवाद. लोग कहते हैं कि पानी की एक पतली तेज धार जब स्टील की परत काट
सकती है तो बस यही बात यहाँ भी लागु होती है. ऐसे ही मन में अंगारे लिए किसी युवा को जब हथियारों का साथ और दहशतगर्दों की पनाह मिल जाती है तो वो मर कर भी तबाही
फैला जाना चाहता है और मरने-मारने को हमेशा तयार होता है. क्योंकि आतंकवाद और उग्रवाद बस एक हरे हुए इंसान की ही कहानी होती है
किसी ने ठीक ही कहा है कि अपने अपने ही होते हैं और पराये पराये. तो मेरी मुँह बोली बहन ने भी, जिसे मैं प्यार से अक्सर
चीनी वाली बहन से संबोधित करता था, आखिर ये अहसास दिलवा ही दिया कि वो पराई बहन थी. सगी होती तो क्या ऐसा व्यवहार करती
जिसकी ईंट ईंट पर
लगने वाला
नया रंग रोगन भी
भुला न पाएगा
बीते कल की
अमिट खुशबू को।
तुम उम्र हमारी , यूँ पहचान न पाओगी ,
मैं मरे हुए सपने , जवान कर सकता हूँ !
निश्छल दिल लेकर,इस बस्ती में जन्मा हूँ
तुम प्यार के गीत सुनाओ,तो रो सकता हूँ
मैं थी तुम्हारे सामने ,
घेरदार,घुमावदार,ज़मीन को छूता हुआ,
लाल,बेहद आकर्षक सा विलायती गाउन पहने हुए,
और तुम भी तो जँच रहे थे
काले रंग के विलायती कोट-पेंट में ......लग रही थी बिलकुल शाही जोड़ी
गुलाब की पौध में,
नियमित काट छांट के आभाव में
निकल आती हैं जंगली शाख.
इनमे फूल नहीं खिलते
उगते हैं सिर्फ कांटे.
लोकतंत्र होता है गुलाब की तरह ...
संग बैठे थे कभी गाये थे मिलकर प्रीत के गीत
सब सुंदर जग सुहाना था ,जब तुम थे मेरे मीत/
कभी आँचल में तेरे गुज़ारे थे हमने दिन और रात
आज भी है खुश्बू का अहसास,तब मीठी थी हर बात/
कल तलक थे साथ ,जिसके आज उससे दूर हैं
सेक्युलर कम्युनल का ऐसा घालमेल देखिये
हो गए कैसे चलन अब आजकल गुरूओं के यार
मिलते नहीं बह आश्रम में ,अब जेल देखिये
सोच में पड़ा हूँ
अब तुम्हें
और क्या संबोधन दूं
अब तुमसे
और क्या कहूं
हमें भी जनता के साहित्य और जनता के साहित्यकारों की शानदार परम्परा को विस्मृत कर दिये जाने के विरुद्ध लड़ना होगा। हमें लिखने को लड़ने का अंग बनाना होगा
और इसमें निहित सारी परेशानियाँ, सारे जोखिम उठाने होंगे। मुक्ति स्वप्नों के इन्द्रधनुष को विस्मृति में खोने से भी बचाना होगा और विकृतिकरण की कोशिशों
से भी। सृजन-कर्म की एकमात्र यही सार्थकता हो सकती है।
हर भाषण की चूक, हूक गांधी के दिल में |
मार राख पर फूंक, लगाते लौ मंजिल में |
*कसंग्रेस भी आज, करें दंगों का धंधा |
मत दे मत-तलवार, बनेगा बन्दर अन्धा ||
आज बस इतना ही...ब्लौग प्रसारण को हम कैसे बेहतर बना सकते हैं... आप सबों के सुझाव blogprasaran@gmail.com पर आमंत्रित हैं... धन्यवाद...
Thursday, October 24, 2013
ब्लॉगप्रसारण : अंक 155
नमस्कार मित्रों,
आज के इस 155 वें अंक में आप सभी का मैं राजेंद्र कुमार आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ।आइये एक नजर डालते है आज के प्रसारण की तरफ एक सुन्दर ग़ज़ल के साथ ….
महलों का करेंगे क्या हमें कोने की आदत है।
हमें सोना नहीं देना हमें सोने की आदत है।
बड़ी मुश्किल से ढूँढा था,मगर फिर लापता है वो
उसे क्या खोजना है जी,जिसे खोने की आदत है।
सताता है ये खालीपन,सालती है ये बेफ़िक्री,
ये कंधे लग रहे हल्के, हमें ढोने की आदत है।
खज़ाना पाके क्या वो लोग हँसना सीख जायेंगे,
जिन्हें औरों के आगे बेवज़ह रोने की आदत है।
प्रस्तुतकर्ता:प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,फतेहपुर
चांदी-सा पानी सोना हो जाता है
तन्हा रह कर हासिल क्या हो जाता है
बस, ख़ुद से मिलना-जुलना हो जाता है
यशोदा अग्रवाल
तन्हा रह कर हासिल क्या हो जाता है
बस, ख़ुद से मिलना-जुलना हो जाता है
"एक अजनबी मोड़"
मीनाक्षी मिश्रा
न जाने कैसी रात थी वो ,बादल आसमान में नहीं दिल पर छाये थे,
उस रात मेघा के दिल में हलचल तो थी,मगर हमेशा की तरह अंधी
मीनाक्षी मिश्रा
उस रात मेघा के दिल में हलचल तो थी,मगर हमेशा की तरह अंधी
गंगेश कुमार ठाकुर
विस्थापन देश के विकास का परिचायक है या नहीं ये तो नहीं पता पर अपनी राजनीति चमकाने और ढेरों रुपया बटोरने का जरिया जरूर है। खनन के नाम पर लोगों से जमीन लो और फिर जमीन के मालिकाना हक से भी उन्हें बेदखल कर दो।
प्रवीन पाण्डेय
मुझे साइकिल के आविष्कार ने विशेष प्रभावित किया है। सरल सा यन्त्र, आपके प्रयास का पूरा मोल देता है आपको, आपकी ऊर्जा पूरी तरह से गति में बदलता हुआ, बिना कुछ भी व्यर्थ किये। दक्षता की दृष्टि से देखा जाये तो यह सर्वोत्तम यन्त्र है। घर्षण में थोड़ी बहुत ऊर्जा जाती है,
मनोज जैसवाल
नोकिया लूमिया 2520 टैबलट
श्याम कोरी 'उदय'
हम ज़िंदा लोग हैं 'उदय', तब ही तो हिल-डुल रहे हैं
वर्ना, क्या देखा है किसी ने कभी मुर्दों को हिलता ?
…
'खुदा' जाने इतनी मसक्कत क्यूँ हुई है आज उनसे
जिन्हें, कभी, हम, फूटी कौड़ी भी सुहाये नहीं थे ??
…
'खुदा' जाने इतनी मसक्कत क्यूँ हुई है आज उनसे
जिन्हें, कभी, हम, फूटी कौड़ी भी सुहाये नहीं थे ??
नितीश तिवारी
ना जाने कब होगा दीदार चाँद का,
पिया मिलन की रात है ऐसी आयी ,
आज फिर से निखरेगा रूप मेरे यार का।
सुमन जी
चाँद ,
चमक तुम्हारी
बढ़ जायेगी खास
फलक पर आओ
हम भी महक
लेंगे जरा …
चमक तुम्हारी
बढ़ जायेगी खास
फलक पर आओ
हम भी महक
लेंगे जरा …
सीमा गुप्ता
चंदा से झरती
झिलमिल रश्मियों के बीच
एक अधूरी मखमली सी
ख्वाइश का सुनहरा बदन
झिलमिल रश्मियों के बीच
एक अधूरी मखमली सी
ख्वाइश का सुनहरा बदन
दिगम्बर नासवा
समय ने याद की गुठली गिरा दी
लो फिर से ख्वाब की झाड़ी उगा दी
उड़ानों से परिंदे डर गए जो
परों के साथ बैसाखी लगा दी
लो फिर से ख्वाब की झाड़ी उगा दी
उड़ानों से परिंदे डर गए जो
परों के साथ बैसाखी लगा दी
एक प्रयास सेदोका का
विभा रानी श्रीवास्तव
निशा श्रृंगार
चंदा प्यार छलके
सतीसत्व महके
शशि मुखरा
बदली घेर गया
भार्या दिल दहके
विभा रानी श्रीवास्तव
निशा श्रृंगार
चंदा प्यार छलके
सतीसत्व महके
शशि मुखरा
बदली घेर गया
भार्या दिल दहके
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सवाल पर सवाल हैं, कुछ नहीं जवाब है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
आज के प्रसारण को यहीं पर विराम देते हैं,इसी के साथ मुझे इजाजत दीजिये,मिलते हैं फिर से एक नए उमंग के साथ अगले गुरुवार को कुछ नये चुने हुए प्यारे लिंक्स के साथ, आपका दिन मंगलमय हो।
Wednesday, October 23, 2013
ब्लॉगप्रसारण : अंक 154
नमस्कार !सभी दोस्तों का ब्लॉगप्रसारण पर स्वागत है
आये कार्तिक माह में ,कृष्ण पक्ष की चौथ
व्रत निर्जला सुहागिनें , करतीं करवाचौथ //
करवाचौथ दोहे
टेलीफोनिक कविता
बदी न कर बैठें
कुछ ख्याल
दिल्ली से झुंझुनू
करवाचौथ
हमारी यह जिंदगी
कहानी साहित्य की
करवाचौथ
दीजिए इज़ाज़त
.. शुभविदा ..
Tuesday, October 22, 2013
आ जाओ चाँद : ब्लॉग प्रसारण अंक 153
"जय माता दी" अरुन की ओर से आप सबको सादर प्रणाम . ब्लॉग प्रसारण में आप सभी का हार्दिक स्वागत करते हुए बढ़ते हैं सूत्रों की ओर. |
संध्या शर्मा
|
Sadhana Vaid
|
Sunita Agarwal
|
सरिता भाटिया
|
रश्मि शर्मा
|
Shikha Varshney
|
Anju
|
निवेदिता
श्रीवास्तव
|
सदा
|
इसी के साथ मुझे इजाजत दीजिये मिलते हैं मंगलवार को आप सभी के चुने हुए प्यारे लिंक्स के साथ. शुभ विदा शुभ दिन, स्वस्थ रहें मस्त रहें खुशियों में व्यस्त रहें. |
Monday, October 21, 2013
ब्लॉग प्रसारण: सोमवारीय अंक
नमस्कार , मैं नीरज कुमार नीर उपस्थित
हूँ ब्लॉग प्रसारण के सोमवारीय अंक के साथ आपके लिए प्रस्तुत हैं
मेरे द्वारा चुने हुए कुछ लिंक्स . पढ़िए और अपनी पसंद नापसंद अवश्य
बताइए .
|
सीतामढ़ी की महिमा महान है
मोहन श्रीवास्तव
|
असंवादनिहार रंजनमायावी परिरंभ से बचनामाया से होना भयभीत |
चित्तोड़ की महारानी पद्मिनीहर्षवर्धन |
सपना और यथार्थसुमन |
धन का देवता या रक्षकराजीव कुमार झा |
भावुकता बनाम संवेदनशीलताअंकुर जैन |
कल्पवास मेलाविभा रानी श्रीवास्तव |
ये जो ख़त मैंने तुमको लिखे हैसुषमा आहुति |
वही फ़कीरी की जमीदारीराम किशोर उपाध्याय |
शिक्षक : राष्ट्र-विधाता एवं राष्ट्र-निर्माताडॉ. वी. के. पाठक |
इसी के साथ मुझे दीजिये इजाजत फिर मुलाकात होगी अगले सोमवार को
Sunday, October 20, 2013
रविवार, 20 अक्तूबर 2013
रविवारीय प्रसारण
ब्लॉग प्रसरण अंक 151
सुप्रभात मित्रों
रविवार की अलसाई सी सुबह में मैं, शालिनी आप सभी का ब्लॉग प्रसारण पर स्वागत है ... तो चलिए, लिए चलते हैं आपको कुछ चुनिन्दा सूत्रों की ओर ..
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विजय कुमार
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नीलिमा शर्मा
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रश्मि शर्मा
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अनिता
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वीरेन्द्र कुमार शर्मा जी
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सतीश सक्सेना
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कालीपद प्रसाद
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राजीव कुमार झा
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भारद्वाज ग्वालियर
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दिव्या शुक्ला
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अनुपमा पाठक
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प्रखर मालवीय कान्हा
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अंत में स्वरचित इन दो दोहों के साथ आप सबसे विदा चाहूंगी
१
जोड़ी जुगल निहार मन, प्रेम रस सराबोर|
राधा सुन्दर मानिनी, कान्हा नवल किशोर||
२.
हरे बाँस की बांसुरी, नव नीलोत्पल गात|
रक्त कली से अधर द्वय,दरसत मन न अघात ||
शुभ दिन .. शुभ समय
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
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