नमस्कार व शुभप्रभात...
कल वाल्मीकिजयंति थी...इस लिये आज के प्रसारण का आरंभ क्यों न रामायण के एक प्रसंग से क्यों न किया जाए... हां एक बात तो मैं भूल ही गया था कि आज ब्लौग प्रसारण अपने 150 अंक पूरे कर रहा है... आप सब को इस की भी शुभकामनाएं...
कुशलक्षेम पूछने के पश्चात् राजा दशरथ ने विनम्र वाणी में ऋषि विश्वामित्र से कहा, "हे मुनिश्रेष्ठ! आपके दर्शन से मैं कृतार्थ हुआ तथा आपके चरणों की पवित्र
धूलि से यह राजदरबार और सम्पूर्ण अयोध्यापुरी धन्य हो गई। अब कृपा करके आप अपने आने का प्रयोजन बताइए। किसी भी प्रकार की आपकी सेवा करके मैं स्वयं को अत्यंत
भाग्यशाली समझूँगा।"
महल दुमहले मिट जायेंगे, जिनमे मानव-रक्त मिला है
बहुआयामी, चिर अस्थायी, मुझको यह फुटपाथ चाहिए॥
जिस प्रभात में होंवे दंगा, निरपराधी मारे जाएँ
ऐसे दिन के बदले मुझको, शान्ति भरी इक रात चाहिए॥
यूँ भी बेवजह ढोलक पर थाप नही दी जाती
तो फिर क्यों बेज़ार हो खटखटाऊँ मौन की कुण्डियाँ
जब नक्काशी के लिए मौजूद ही नहीं सुलगती लकड़ियाँ
अब कौन दीवान-ए -आम और दीवान-ए -ख़ास की जद्दोजहद में उलझे
आज मैं आपके लिए एक ऐसा ही सोफ्टवेयर लेकर आया हु जिससे आप अपनी खराब हो चुकी सीडी या डीवीडी में से कुछ हद तक
अपने डाटा को अपने कंप्यूटर में सेव कर सकते हो
हम धर्म की नहीं ,ठेकेदारों के अंधत्व की निंदा करते हैं
आस्था के ,अपनत्व के हत्यारों की निंदा करते हैं
गर यही धर्म है यही नीति तो हम हाथ छुड़ाकर लो चले
हत्यारे हो जाने से विधर्मी कहलाने में भले ......
अपेक्षाऐं किसी से रखने
का मोह कभी कोई
त्याग ही नहीं पाता है
अपेक्षाऐं होती हैं अपेक्षाऐं
रह जाती हैं हमेशा अपेक्षाऐं
बात मानो मेरी
इस बरस तुम
गुजरे लम्हात के
रेशे से बुन
एक नई चादर
बना लेना
उच्च वर्गो को दी जा रही छुटो अधिकारों के खिलाफ संगठित होना है इसके लिए स्वंय ही आम आदमी को सता शासन में भागीदारी के लिए तैयार होना पड़ेगा | लेकिन एक बात
को ध्यान में रखना होगा जनहित के लिए शासक वर्ग बनने के लिए आवश्यक है कि वह धर्म , जाति , क्षेत्र के आपसी अन्तरविरोध को कमतर करने का प्रयास करना होगा और
यह कार्य हिन्दू , मुसलमान , सिक्ख , ईसाई व् बड़ी -- छोटी दलित जाति के पहचान को भुलाना होगा इन सबसे उपर उठाना होगा \ तभी हम ऐसे वक्त में इनसे मुकाबला कर
सकते है | तुम्हें तो राज हमारे सरों से मिलता है,
खिला हुआ है गगन में, उज्जवल-धवल मयंक।
नवल-युगल मिलते गले, होकर आज निशंक।।
निर्मल हो बहने लगा, सरिताओं में नीर।
मन्द-मन्द चलने लगा, शीतल-सुखद समीर।।
जनता ,मीडिया ,संत , नेता
सभी
अपनी बास्तबिक परेशानियों को भूलकर
स्वप्न में मिले स्वर्ण को
पाने के लिए मशगूल हो गए
न घबराए कभी तुमसे , न आंधी और पानी से !
हमें लोगों ने तूफानों में , अक्सर मस्त पाया है !
अभी तो कोशिशें करते हैं, सबसे दूर रहने की
भरोसा ही सदा हमने,यहाँ क्षतिग्रस्त पाया है
भाव नहीं चेहरे पर दिखते
क्या दिल में जज्बात नहीं
मौसम बारिश का हो चाहे
आँखों में बरसात नहीं
ये कागज कल जल न जाये,
वक़्त की बारिश में गल न जाये
जियो खुल कर जिंदगी को तुम,
सब कुछ, जब तक जिन्दा हो तुम
चाँद तूने वादा किया था
रोज रात आने का
पर तूने मुंह छिपाया
बादलों की ओट में
ऐसी अदालत में है मेरा केस जहां
हरिक वाक़या अफ़साना हो जाता है
पूछे है वो हाल हमारा कुछ ऐसे
ज़ख्मे – जुदाई और हरा हो जाता है
चढ़- चढ़ जावै साँस , कहाँ वह हरियाली है
आँख मोतियाबिंद , उसी की अब लाली है
छाँह गहे अब कौन , नहीं रहि छाया शीतल
रहा रात भर खाँस, अब सठिया गया पीपल
आज बस इतना ही...मिलते रहेंगे...धन्यवाद...
शुभ प्रभात
ReplyDeleteभाई कुलदीप जी
आभार
अच्छी रचनाएँ पढ़वाई आपने
सादर
शुभ प्रभात
ReplyDeleteअच्छे सूत्र दिए हैं |आपकी महानत सराहनीय है |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
सुंदर सूत्रों के साथ पेश किया है आज का प्रसारण
ReplyDeleteउल्लूक की अपेक्षाऐं कैसी भी किसी से रखने में क्या जाता है
को शामिल करने पर कुलदीप जी का आभार !
मंच में सम्मान देने के लिए मैं आपका आभारी हूँ।
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक लिंकों के चयन के साथ बेहतरीन प्रसारण,आपका आभार।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ब्लॉग प्रसारण प्रस्तुति ..
ReplyDeleteआभार
सुन्दर लिंक्स से सजा उम्दा प्रसारण्……आभार
ReplyDeleteसुन्दर लिंक्स से सजा उम्दा प्रसारण्……मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
ReplyDeleteबड़े ही सुन्दर सूत्र..
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