सभी मित्रों
को मेरा नमस्कार!
आज के इस प्रसारण
में प्रस्तुत हैं आपके ही कुछ नए पुराने लिंक्स!
तो, आनंद लीजिए इन लिंक्स का-
तो, आनंद लीजिए इन लिंक्स का-
ओम् जय शिक्षा दाता, जय-जय शिक्षा दाता।
जो जन तुमको ध्याता, पार उतर जाता।।
तुम शिष्यों के सम्बल, तुम ज्ञानी-ध्यानी।
संस्कार-सद्ग...
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फिर छू गया दर्द कोई
हवा ये कैसी चली
यादों ने ली फिर अंगड़ाई
आँख मेरी भर आई……
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बहुत दिनों बाद मै अपने मायके (गाँव) जा रही थी | बहुत खुश थी कि मै अपनी रानी दी से मिलूँगी...
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घर ही उजाड़ दिया -----
मतलब की दुनिया है मतलब के रिश्ते हैं
कौन कहे मेले में आज कहीं अपने हैं -----
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बदलती ऋतु की रागिनी, सुना रही फुहार है।
उड़ी सुगंध बाग में, बुला रही फुहार है।
कहीं घटा घनी-घनी, कहीं पे धूप...
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रोज सुबह मुंह अंधेरे दूध बिलोने से पहले मां चक्की पीसती और मैं आराम से सोता तारीफों में बंधी मां जिसे मैंने कभी सोते नहीं देखा आज...
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आज शिक्षक दिवस है और इसको हर साल मनाते हैं! बधाईयां , शुभकामनायें देकर हम अपनें कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं! लेकिन...
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बात विरोधाभास से ही टकराती है
सांप के काटे चिन्ह पर ...
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अब आज्ञा दीजिए!
नमस्कार!
आदरणीय बृजेश भाई जी इस शानदार प्रसारण हेतु हृदयतल से हार्दिक आभार आपका. पठनीय सूत्र
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रसारण आभार
ReplyDeleteआप सभी मित्र यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे धर्म गुरुओं का अधर्म की ओर कदम ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः13
बहुत सुन्दर सूत्र !!
ReplyDeleteअति सुंदर प्रसारण
ReplyDeleteसादर।
बहुत सुन्दर सूत्र !!न्दर प्रसारण. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार..
ReplyDeleteअति उत्तम पठनीय प्रसारण में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश जी
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रसारण पठनीय सूत्र हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और पठनीय सूत्र..
ReplyDeleteबृजेश भाई, सुंदर और प्रभावशाली सूत्र संजोय हैं
ReplyDeleteशानदार संयोजन
मुझे सम्मलित करने का आभार
उत्कृष्ट प्रस्तुति -----