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Friday, September 6, 2013

अभिव्यंजना

सभी मित्रों को मेरा नमस्कार!
आज के इस प्रसारण में प्रस्तुत हैं आपके ही कुछ नए पुराने लिंक्स! 
तो, आनंद लीजिए इन लिंक्स का-

ओम् जय शिक्षा दाता, जय-जय शिक्षा दाता। 
जो जन तुमको ध्याता, पार उतर जाता।। 
तुम शिष्यों के सम्बल, तुम ज्ञानी-ध्यानी। 
संस्कार-सद्ग...
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फिर छू गया दर्द कोई 
 हवा ये कैसी चली 
 यादों ने ली फिर अंगड़ाई 
 आँख मेरी भर आई…… 
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बहुत दिनों बाद मै अपने मायके (गाँव) जा रही थी | बहुत खुश थी कि मै अपनी रानी दी से मिलूँगी...
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घर ही उजाड़ दिया -----
 मतलब की दुनिया है मतलब के रिश्ते हैं 
कौन कहे मेले में आज कहीं अपने हैं -----
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बदलती ऋतु की रागिनी, सुना रही फुहार है। 
उड़ी सुगंध बाग में, बुला रही फुहार है। 
कहीं घटा घनी-घनी, कहीं पे धूप...
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रोज सुबह मुंह अंधेरे दूध बिलोने से पहले मां चक्की पीसती और मैं आराम से सोता तारीफों में बंधी मां जिसे मैंने कभी सोते नहीं देखा आज...
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आज शिक्षक दिवस है और इसको हर साल मनाते हैं! बधाईयां , शुभकामनायें देकर हम अपनें कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं! लेकिन...
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बात विरोधाभास से ही टकराती है 
सांप के काटे चिन्ह पर ...
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 अब आज्ञा दीजिए!
नमस्कार!

9 comments:

  1. आदरणीय बृजेश भाई जी इस शानदार प्रसारण हेतु हृदयतल से हार्दिक आभार आपका. पठनीय सूत्र

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रसारण आभार

    आप सभी मित्र यहाँ भी पधारें और अपने विचार रखे धर्म गुरुओं का अधर्म की ओर कदम ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः13

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  3. अति सुंदर प्रसारण

    सादर।

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  4. बहुत सुन्दर सूत्र !!न्दर प्रसारण. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार..

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  5. अति उत्तम पठनीय प्रसारण में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय बृजेश जी

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  6. बेहद सुन्दर प्रसारण पठनीय सूत्र हार्दिक आभार आपका

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  7. बहुत ही सुन्दर और पठनीय सूत्र..

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  8. बृजेश भाई, सुंदर और प्रभावशाली सूत्र संजोय हैं
    शानदार संयोजन
    मुझे सम्मलित करने का आभार

    उत्कृष्ट प्रस्तुति -----






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