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Friday, September 20, 2013

कविता

सभी मित्रों को मेरा नमस्कार!
हर सप्ताह जब कुछ लिंक्स चुनकर आपके सामने प्रस्तुत करना होता है तब बहुत कठिनाई होती है कि किसे शामिल करें और किसे छोडें. हर रचनाकार इतनी लगन और शिद्दत से लेखन करता है कि बस, पढते ही सीधे दिल पर असर होता है. पर सब को शामिल करना संभव भी नहीं, जगह की कमी जो है.
तो लीजिये, कुछ नए-पुराने साथियों की रचनाओं के साथ प्रस्तुत है आज का प्रसारण-


सोहनलाल द्विवेदी जी की कालजयी रचना 
युग युग से है अपने पथ पर  देखो कैसा खड़ा हिमालय! 
डिगता कभी न अपने प्रण से रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!...


भाग्य विधाता भारत की, पतवार भारती हिन्दी है। 
अंचल अंचल की उन्नति का, द्वार भारती हिन्दी है।...


हिन्दी भाषा का हुआ, दूषित विमल-वितान। 
स्वर-व्यंजन की है नहीं, हमको कुछ पहचान।। 
बात-चीत परिवेश में, अंग्रेजी उपलब्ध।...


बिछडे हुए मिलेँ तो गज़ल होती है. 
खुशियोँ के गुल खिलेँ त गज़ल होती है. 
वर्शोँ से हैँ आलस्य के नशे मेँ हम सभी...


वो बार- बार घड़ी देखती और बेचैनी से दरवाजे  की तरफ देखने लगती  |५ बजे ही आ जाना था उसे अभी तक नही आया , कोचिंग के टीचर को भी फोन कर चुकी...


माँ सम हिन्दी भारती, आँचल में भर प्यार। 
चली विजय-रथ वाहिनी, सात समंदर पार।   
सकल भाव इस ह्रदय के, हिन्दी पर...


डा0 जगदीश व्योम 
राजा मूँछ मरोड़ रहा है 
सिसक रही हिरनी 
बड़े-बड़े सींगों वाला मृग 
राजा ने मारा 
किसकी यहाँ मजाल 
कहे राजा को...


1 -डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा   
1 मुख-मुस्कान   
नयना प्यार - भरे   
माथे पर बिंदिया   
नन्हा - सा मन   
स्वप्न सजाए, 
बनूँ  तेरी परछ...


आज बस इतना ही!
अगले शुक्रवार को फिर भेंट होगी!
तब तक के लिए नमस्कार!

12 comments:

  1. आदरणीय बृजेश भाई जी पठनीय सूत्र शानदार प्रसारण हार्दिक आभार आपका.

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  2. सोहनलाल द्विवेदी जी की कालजयी रचना के रूप में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार |
    बाकी सभी लिंक भी उम्दा |

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  3. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार भाई जी-

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  4. सुन्दर सूत्रों की सुन्दर प्रस्तुति
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आ० बृजेश जी

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  5. सुंदर सुत्र है...
    सादर

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  6. बहुआयामी सूत्रों से सजा ब्लॉग!

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  7. नई कलम के नव-गीतों का, सार
    भारती हिन्दी है।

    वाह बेहद सशक्त रचना

    निज भाषा का मान बढ़ाती ,

    अपने कद का भान कराती।

    माँ का स्नेहिल दुग्ध -पान,

    आहार शिशु का, पहला पहला हिंदी है।

    पतवार भारती हिन्दी है



    एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

    http://kalpanaramanis.blogspot.com/2013/09/blog-post.html?spref=bl


    पतवार भारती हिन्दी है


















    भाग्य विधाता भारत की,
    पतवार भारती हिन्दी है।
    अंचल अंचल की उन्नति का, द्वार
    भारती हिन्दी है।

    इसमें गंध बसी माटी की,
    युग-पुरुषों की परम प्रिया।
    नाट्य मंच हों या कि चित्र पट,
    विजय वाहिनी की चर्चा।
    संस्कृत की यह सुता सुंदरी
    आदिकाल की यह थाती,
    इसके कर-कमलों ने युग-युग
    ग्रंथ-ग्रंथ इतिहास रचा।

    संत-फकीरों का सुलेख, सुविचार
    भारती हिन्दी है।

    सखी सहेली हर भाषा की,
    दल-बल साथ लिए चलती।
    नए-नए शब्दों से निस दिन,
    विस्तृत कोश किया करती।
    विश्व-जाल औ' विश्व मंच पर,
    हर स्थान हस्ताक्षर कर,
    पुरस्कार सम्मान समेटे,
    नई सीढ़ियाँ नित चढ़ती।

    देश-देश को जोड़ रही वो, तार
    भारती हिन्दी है।

    हर सपूत सेवा में इसकी,
    ले मशाल आगे आए।
    रहे सदा आबाद भारती,
    भारतीय हर अपनाए।
    दिखा रही पथ नव पीढ़ी को,
    नव-भारत का स्वप्न यही,
    विजय पताका दिशि-दिशि इसकी,
    उच्च शिखर पर लहराए।

    नई कलम के नव-गीतों का, सार
    भारती हिन्दी है।

    --------कल्पना रामानी
    माँ का स्नेहिल दुग्ध -पान,

    आहार शिशु का, पहला पहला हिंदी है।

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  8. ब्लॉग प्रसारण २० सितम्बर अंक बेहद सशक्त रहा एक से एक सेतु शिखर की ओर ले जाते रहे।

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  9. कल अवकाश के चलते उपस्थित सका, सुन्दर सूत्रों से संकलित पठनीय सूत्र से सजा ब्लॉग प्रसारण हेतु हार्दिक आभार.

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