नमस्कार मित्रों,
आज के इस अंक
में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज के अपने पहले प्रसारण में मैं अपनी पसंद के कुछ
चुनिंदा लिंक्स लेकर आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूं।
रश्मि शर्मा
उदासी की पहली किस्त....
सारी रात की जागी आंखों ने
भोर के उजाले में अपनी पलकें बंद की ही थी.........
कि तभी कानों में आवाज आई.....
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विचार: हिंद स्वराज्य-4:
मनोज कुमार
गांधी और गांधीवाद
हिंद स्वराज्य- 4 स्वदेशी और ग्राम समाज
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विचार: हिंद स्वराज्य-4:
मनोज कुमार
गांधी और गांधीवाद
हिंद स्वराज्य- 4 स्वदेशी और ग्राम समाज
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एक बार तेरे शहर में आकर जो बस गया,
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झूठी संवेदना मत जताया करो:
अरुण कुमार निगम
झूठे वादों से यूँ न लुभाया करो
वादा कर ही लिया तो निभाया करो...
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फाइबर की जरूरत:
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झूठी संवेदना मत जताया करो:
अरुण कुमार निगम
झूठे वादों से यूँ न लुभाया करो
वादा कर ही लिया तो निभाया करो...
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फाइबर की जरूरत:
राजेन्द्र कुमार
स्वास्थ्य चर्चा के क्रम में आज हम भोजन में फाइबर की उपयोगिता के बारे में चर्चा करेंगे.वैसे तो आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अनेक तरह की
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"कहाँ गयी केशर क्यारी?"
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
आज देश में उथल-पुथल क्यों ,
क्यों हैं भारतवासी आरत ?
कहाँ खो गया रामराज्य ,
और गाँधी के सपनों का भारत ?
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मशीनी मानव !!:
राजेश कुमारी
बस पांच मिनट का पड़ाव
उस स्टेशन पर
देख रही हूँ उस पार किस तरह
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चम्पक वन में दो सखियाँ:
अदिति पूनम
चम्पक-वन में बैठ सखी संग ,
कहती सुनती कुछ मन की जीवन की
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नवगीत: पके पान झर गये:
नरेन्द्र शर्मा
पके पान झर गये
डाल पर नये पान आये
पल्लव के धर देह नेह के
नए प्रान आये ।
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करनी का फल धरणी देगी
कल्पना रामानी
जीवन भर जिसने दी छाया ,
इन्सानों ने उसे मिटाया।
काट काट कर डाली डाली ,
छलनी कर दी जड़ से काया। ...
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अंत में एक चित्र
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"कहाँ गयी केशर क्यारी?"
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
आज देश में उथल-पुथल क्यों ,
क्यों हैं भारतवासी आरत ?
कहाँ खो गया रामराज्य ,
और गाँधी के सपनों का भारत ?
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मशीनी मानव !!:
राजेश कुमारी
बस पांच मिनट का पड़ाव
उस स्टेशन पर
देख रही हूँ उस पार किस तरह
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चम्पक वन में दो सखियाँ:
अदिति पूनम
चम्पक-वन में बैठ सखी संग ,
कहती सुनती कुछ मन की जीवन की
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नवगीत: पके पान झर गये:
नरेन्द्र शर्मा
पके पान झर गये
डाल पर नये पान आये
पल्लव के धर देह नेह के
नए प्रान आये ।
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करनी का फल धरणी देगी
कल्पना रामानी
जीवन भर जिसने दी छाया ,
इन्सानों ने उसे मिटाया।
काट काट कर डाली डाली ,
छलनी कर दी जड़ से काया। ...
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अंत में एक चित्र
अब बृजेश को आज्ञा दीजिए। अगले शुक्रवार को फिर भेंट होगी।
तब तक के लिए नमस्कार!
बेहतरीन लिंक्स.. सारे लिंक्स एक से बढ़कर एक हैं.. ऐसे ही आपका प्रसारण जारी रहे यही शुभकामना है....
ReplyDeleteप्रशान्त भाई आपका आभार! अपना स्नेह यूं ही बनाए रखिए।
Deleteबेहतरीन लिंक्स एवं संयोजन ... आभार
ReplyDeleteसदा जी आपका आभार!
Deleteबृजेश भाई बहुत ही सुन्दर लिंक्स लिए हैं आपने आज के प्रसारण में, प्रस्तुतीकरण भी बेहद सुन्दर है, हार्दिक आभार.
ReplyDeleteअरून भाई आपका आभार! यह सब आपके मार्गदर्शन से ही सम्भव हो सका।
Deleteबढिया लिंक्स
ReplyDeleteशुभकामनाएं
आदरणीय महेन्द्र जी आपका आभार!
Deleteब्रिजेश नीरज जी
ReplyDeleteनमस्कार
बहुत बढ़िया सूत्र पिरोए हैं ,हार्दिक अभिनन्दन आपका ब्लॉग प्रसारण पर
आदरणीया सरिता जी आपका आभार!
Deleteबेहतरीन आलेख अलबत्ता दस्त लगने ,डायरिया होने पर फाइबर का प्रयोग न करें आतों का काम बढ़ेगा .जो तरकारियाँ खाने के बाद दाँतों में फंसजाती हैं टूथ पिक मांगतीं हैं वही अच्छी .
ReplyDelete--------------------------------------------------------
फाइबर की जरूरत:
राजेन्द्र कुमार
ब्लॉग प्रसारण का यह अंक भी अव्वल रहा .
ReplyDeleteआदरणीय वीरेन्द्र जी आपका आभार!
Deleteबढिया लिन्कस बृजेश जी .... शुभकामनायें !
ReplyDeleteआदरणीया मलिक जी आपका आभार! आपको यहां देखकर बहुत अच्छा लगा!
Deleteएक बार तेरे शहर में आकर जो बस गया,
ReplyDeleteता-उम्र फड़फडाता, किस पिंज़रे में फ़स गया.
आदरणीय कैलाश शर्मा जी, आप की रचना में शहर की मशीनी जिंदगी की लाचारी भी है,तो अजनबी बन कर जीने की पीड़ा भी. तमाम विसंगतियों के बावजूद कोमल हृदय भावुकता को त्याग नहीं पाता. भावपूर्ण रचना के लिये बधाई...
एक बार तेरे शहर में आकर जो बस गया,
ReplyDeleteता-उम्र फड़फडाता, किस पिंज़रे में फ़स गया.
आदरणीय कैलाश शर्मा जी, आप की रचना में शहर की मशीनी जिंदगी की लाचारी भी है,तो अजनबी बन कर जीने की पीड़ा भी. तमाम विसंगतियों के बावजूद कोमल हृदय भावुकता को त्याग नहीं पाता. भावपूर्ण रचना के लिये बधाई...
आदरेया राजेश कुमारी जी, पाँच मिनट के पड़ाव में यथार्थ को शब्द-चित्र में उकेर देना आसान नहीं होता. इस दृश्य को कितनी ही आँखें रोज देखती हैं.किंतु मशीनी-मानव के मर्म को विरले ही पढ़ पाते हैं.इस दृष्टि को नमन.....
ReplyDeleteमेरे लेख को वि शेष रचना कोना में स्थान देने के लिये आभार
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स...मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteआदरणीया आपका आभार!
Deleteलिंक १ - तुम बिन बहुत उदास है कोई.....
ReplyDeleteआदरणीया रश्मि शर्मा प्रस्तुत चित्र को बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने, प्रेम के एहसासों को शब्दों में बेहद बारीकी से बांधा है. हार्दिक बधाई स्वीकारें
लिंक 4 - झूठी संवेदना मत जताया करो
ReplyDeleteवाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह यथार्थ को बहुत ही सुन्दरता से बयां किया है आपने, पूर्ण सत्य, सटीक एवं शिक्षाप्रद प्रस्तुति आदरणीय इस सुन्दर और मुक्कमल ग़ज़ल के लिए दिली दाद के साथ साथ हार्दिक बधाई भी स्वीकारें.
आभार...!
ReplyDeleteगुरूदेव आशीष बनाए रखिए!
Deleteक्षमा करें,कल अनुपस्थित थ सो आपका इस बेहतरीन प्रसारण का अव्लोलन न कर सका,सच में आज का प्रसारण उत्कृष्ट रहा.
ReplyDeleteआदरणीय राजेन्द्र जी आपका आभार! प्रसारण करना सीखा तो आपसे ही।
Deleteबहुत बढ़िया लिंक्स
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