ब्लॉग प्रसारण पर आप सभी का हार्दिक स्वागत है !!!!

ब्लॉग प्रसारण का उद्देश्य पाठकों तक विभिन्न प्रकार की रचनाएँ पहुँचाना एवं रचनाकारों से परिचय करवाना है. किसी प्रकार की समस्या एवं सुझाव के लिए इस पते पर लिखें. blogprasaran@gmail.com

मित्र - मंडली

पृष्ठ

ब्लॉग प्रसारण परिवार में आप सभी का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन


Tuesday, June 18, 2013

ब्लॉग प्रसारण अंक - 30

"जय माता दी" रु की ओर से आप सबको सादर प्रणाम . ब्लॉग प्रसारण में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

Mukesh Srivastava


दिल चन्दन जलाते रहे
प्यार को महकाते रहे


प्यार बूते पत्थर हमारा
पर प्रेम पुष्प चढाते रहे


रिश्तों के मंदिर मे हम
दीप विश्वास जलाते रहे


लाख दर्द दिल मे निहाँ
मगर हम मुस्काते रहे


ग़ज़ल के गुलदस्ते बना
तन्हाई को सजाते रहे



शारदा अरोरा


मेहँदी घुल गई नस-नस में
फिर भी रँग न गुलाल हुआ


चढ़ते सूरज को नमन
ढलता सूरज बेहाल हुआ


मन की शिकन बोल उठे
हाय क्या आदमी का हाल हुआ


लीपा-पोती , रँग-रोगन
न चेहरे की ढाल हुआ


चलता-पुर्जा , ढीली-चूलें
आदमी अब सिर्फ माल हुआ



सरस दरबारी


हमें और कितना
तोड़ोगे -
मरोड़ोगे-
हमारी सहजता को द्विअर्थी जामा पहना-
और कितना तिरस्कृत करोगे ...!


यूँ तो एक अबोध बालक भी
अपनी हर बात कह लेता है
एक मूक जानवर
अपनी हर ज़रुरत जता देता है,
फिर शब्दों की क्या दरकार...!

Priti Surana


सूखी तप्त जमीन पर दरारें,
मौसम में नमी,
आसमान मे बादल,
मौसम में उमस भरी घुटन से
घर के भीतर जी घबराने लगा,...


इस छटपटाहट से राहत के लिए,
खुले आसमान के नीचे निकल आई,
अचानक तेज गड़गड़ाहट के साथ
बरस पड़े बादल,
और मैंने पसार ली अपनी बांहें,...

Shalini Kaushik


ये राहें तुम्हें कभी तन्हा न मिलेंगीं ,
तुमने इन्हें फरेबों से गुलज़ार किया है .


ताजिंदगी करते रहे हम खिदमतें जिनकी ,
फरफंद से अपने हमें बेजार किया है .


कायम थी सल्तनत कभी इस घर में हमारी ,
मुख़्तार बना तुमको खुद लाचार किया है .


करते कभी खुशामदें तुम बैठ हमारी ,
हमने ही तुम्हें सिर पे यूँ सवार किया है .


सेदोका कृष्णा वर्मा
1
छुआ हवा के
हाथों ने हौले से
नदिया के नीर को,
बज उठी हैं
नदी की कलाई में
लहरों की चूड़ियाँ ।
2
भोले फूलों से
ये चंचल हवाएं
करती हैं गुफ्तगू
खुश्बु चुराएँ
महकती- डोलतीं
क्या शोख़ हैं अदाएँ।
3
रंगीं मौसम
हवा सनसनाए
मधुर गीत गाए
दाद दें डालें
पत्तों की महफिल
वाह-वाह चिल्लाएँ।

Manjusha Pandey

ये चंचल मन
मयूर गया बन
कहीं दूर गगन
शोर करें घन
प्यासा है उपवन
बूंदें बरसी छमछम
गए उसमें सब रम
धरती जो हुई नम
भिन्नी खुशबू गयी बन
थी बढ़ती जो तपन
हलकी हुई वो जलन
चली जो मंद पवन
गीला हुआ सारा चमन
भीगा मेरा भी तन
सांसें हुई मगन
बारिश का हुआ आगमन
करूं कोई गम
नहीं था वो मौसम
नंगे पावं दौड़ते हम
उड़ चले पंछी बन
सराबोर है कण कण
झूमती पत्तियां सन सन
कहीं जाये न थम
हो जाये न गुम
कारे बदरा लगे मनभावन
हुए इतने पावन
एक त्यौहार बन
यूँ आया अबके सावन

प्रेम लता

मुझको भूले हुए नामों से बुलाये कोई
फिर से इक ख़्वाब सुहाना सा दिखाये कोई

अब तो हर सिम्त है फैली हुई इक ख़ामोशी
कम से कम याद की आवाज़ तो आए कोई

आज गरदाब हुआ ग़र्क सफ़ीने में मिरे
आके गरदाब को कश्ती से बचाये कोई

ना ये तोड़े ही बने और न खुलने से खुले
कैसी यह गाँठ पड़ी दिल में बताये कोई

क्यों छलक जाते हैं अरमान तेरे आने से
इस मुअम्मे का हमे हल तो सुझाये कोई

मुझको आता है मुकद्दर की हिफ़ाज़त करना
मेरे हाथों से लकीरें ना चुराये कोई

इश्क कि राह में हम दूर तलक आ पहुंचे
अब तो इस राह से हम को न हटाये कोई

नूर भर जाएगा दुनियां के हर इक गोशे में
प्रेम” की शम्मा को इक बार जलाये कोई

इसी के साथ मुझे इजाजत दीजिये मिलते हैं मंगलवार को आप सभी के चुने हुए प्यारे लिंक्स के साथ. शुभ विदा शुभ दिन.