दिव्या की ओर से आप सभी को नमस्कार, ब्लॉग प्रसारण-6 में आप सभी का स्वागत है.......
अस्पताल में पड़ी जयंती को होश आ गया था ,परन्तु उसके हाल पूछने वाला ,उसको सांत्वना देने वाला नर्स या एक डाक्टर के अतिरिक्त कोई नहीं था.अस्पताल से छुट्टी तो अभी उसको नहीं मिली थी ,लेकिन उसके सामने तो अँधेरा ही अँधेरा था.
निशा मित्तल
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चाँद
बहुत उदास था…. कल चाँद बहुत उदास था तारे भी थे बुझे बुझे हवा भी थी रुकी रुकी रात के दामन में, छुपा सा कोई राज था कल चाँद बहुत उदास था रौशनी धीर |
पैगाम-ए-इश्क मिलना चाहा तो किए तुमने बहाने क्या-क्या अब किसी रोज़ न मिलने के बहाने आओ। कुमार विशाल |
वक़्त
वक़्त अजीब है तू भी नरम हाथो से तूने पकड़ा था हाथ फिर हथेली पर अश्क की बूंदें बिखर गई मुकेश कुमार सिन्हा |
बोए
हैं तुख़्म-ए-ग़म या मुझसे दोस्ती का अरमान छोड़ दे या आज अपनी आदत-ए-एहसान छोड़ दे सुरेश स्वप्निल |
सदा
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अब
हम सब कुछ हैं बस अब हम प्रेमी नहीं रहे ... तुम और हम दो ध्रुवो की तरह दोनों पर जिंदगी टिकी हुई नहीं हम नदी के दो किनारे नहीं जो साथ ने होकर भी साथ ही हो कनु |
चेहरा
जोधपुर का नामचीन
इलाका, जहाँ जितने हिन्दुओ के घर हैं, उतने ही मुसलमानों के| हर रोज
की तरह उस सुबह भी राज अपने घर की छत पे बैठे मोहल्ले की गली से जेनम
के गुजरने का इंतज़ार कर रहा था| जेनम, राज के पडौस में रहने वाले
खालिद मियां की सबसे छोटी बेटी थी| वह टकटकी लगाए अपनी नजरे सड़क पर
जमाये बैठा था| वक़्त भले ही तेजी से कट रहा था, मगर इंतज़ार खत्म
होने का नाम नहीं ले रहा था| तभी अगले ही पल एक आवाज राज के धडकनों
में समाते हुए, उसके होंठो पे एक प्यारी मुस्कान छोड़ गयी|
तनुज
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तरक्की इस जहाँ में है तमाशे खूब
करवाती , मिला जिससे हमें जीवन उसे एक दिन में बंधवाती .
शालिनी कौशिक
इसी के साथ मुझे इजाजत दीजिये मिलते हैं अगले शनिवार को कुछ नये लिनक्स के साथ - शुभ विदा
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Saturday, May 25, 2013
आओ माँ घर चलें : ब्लॉग प्रसारण-6
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