नमस्कार मित्रों,
आज के इस 155 वें अंक में आप सभी का मैं राजेंद्र कुमार आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ।आइये एक नजर डालते है आज के प्रसारण की तरफ एक सुन्दर ग़ज़ल के साथ ….
महलों का करेंगे क्या हमें कोने की आदत है।
हमें सोना नहीं देना हमें सोने की आदत है।
बड़ी मुश्किल से ढूँढा था,मगर फिर लापता है वो
उसे क्या खोजना है जी,जिसे खोने की आदत है।
सताता है ये खालीपन,सालती है ये बेफ़िक्री,
ये कंधे लग रहे हल्के, हमें ढोने की आदत है।
खज़ाना पाके क्या वो लोग हँसना सीख जायेंगे,
जिन्हें औरों के आगे बेवज़ह रोने की आदत है।
प्रस्तुतकर्ता:प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,फतेहपुर
चांदी-सा पानी सोना हो जाता है
तन्हा रह कर हासिल क्या हो जाता है
बस, ख़ुद से मिलना-जुलना हो जाता है
यशोदा अग्रवाल
तन्हा रह कर हासिल क्या हो जाता है
बस, ख़ुद से मिलना-जुलना हो जाता है
"एक अजनबी मोड़"
मीनाक्षी मिश्रा
न जाने कैसी रात थी वो ,बादल आसमान में नहीं दिल पर छाये थे,
उस रात मेघा के दिल में हलचल तो थी,मगर हमेशा की तरह अंधी
मीनाक्षी मिश्रा
उस रात मेघा के दिल में हलचल तो थी,मगर हमेशा की तरह अंधी
गंगेश कुमार ठाकुर
विस्थापन देश के विकास का परिचायक है या नहीं ये तो नहीं पता पर अपनी राजनीति चमकाने और ढेरों रुपया बटोरने का जरिया जरूर है। खनन के नाम पर लोगों से जमीन लो और फिर जमीन के मालिकाना हक से भी उन्हें बेदखल कर दो।
प्रवीन पाण्डेय
मुझे साइकिल के आविष्कार ने विशेष प्रभावित किया है। सरल सा यन्त्र, आपके प्रयास का पूरा मोल देता है आपको, आपकी ऊर्जा पूरी तरह से गति में बदलता हुआ, बिना कुछ भी व्यर्थ किये। दक्षता की दृष्टि से देखा जाये तो यह सर्वोत्तम यन्त्र है। घर्षण में थोड़ी बहुत ऊर्जा जाती है,
मनोज जैसवाल
नोकिया लूमिया 2520 टैबलट
श्याम कोरी 'उदय'
हम ज़िंदा लोग हैं 'उदय', तब ही तो हिल-डुल रहे हैं
वर्ना, क्या देखा है किसी ने कभी मुर्दों को हिलता ?
…
'खुदा' जाने इतनी मसक्कत क्यूँ हुई है आज उनसे
जिन्हें, कभी, हम, फूटी कौड़ी भी सुहाये नहीं थे ??
…
'खुदा' जाने इतनी मसक्कत क्यूँ हुई है आज उनसे
जिन्हें, कभी, हम, फूटी कौड़ी भी सुहाये नहीं थे ??
नितीश तिवारी
ना जाने कब होगा दीदार चाँद का,
पिया मिलन की रात है ऐसी आयी ,
आज फिर से निखरेगा रूप मेरे यार का।
सुमन जी
चाँद ,
चमक तुम्हारी
बढ़ जायेगी खास
फलक पर आओ
हम भी महक
लेंगे जरा …
चमक तुम्हारी
बढ़ जायेगी खास
फलक पर आओ
हम भी महक
लेंगे जरा …
सीमा गुप्ता
चंदा से झरती
झिलमिल रश्मियों के बीच
एक अधूरी मखमली सी
ख्वाइश का सुनहरा बदन
झिलमिल रश्मियों के बीच
एक अधूरी मखमली सी
ख्वाइश का सुनहरा बदन
दिगम्बर नासवा
समय ने याद की गुठली गिरा दी
लो फिर से ख्वाब की झाड़ी उगा दी
उड़ानों से परिंदे डर गए जो
परों के साथ बैसाखी लगा दी
लो फिर से ख्वाब की झाड़ी उगा दी
उड़ानों से परिंदे डर गए जो
परों के साथ बैसाखी लगा दी
एक प्रयास सेदोका का
विभा रानी श्रीवास्तव
निशा श्रृंगार
चंदा प्यार छलके
सतीसत्व महके
शशि मुखरा
बदली घेर गया
भार्या दिल दहके
विभा रानी श्रीवास्तव
निशा श्रृंगार
चंदा प्यार छलके
सतीसत्व महके
शशि मुखरा
बदली घेर गया
भार्या दिल दहके
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सवाल पर सवाल हैं, कुछ नहीं जवाब है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
आज के प्रसारण को यहीं पर विराम देते हैं,इसी के साथ मुझे इजाजत दीजिये,मिलते हैं फिर से एक नए उमंग के साथ अगले गुरुवार को कुछ नये चुने हुए प्यारे लिंक्स के साथ, आपका दिन मंगलमय हो।