नमस्कार मित्रों, क्षमा करे अपरिहार्य कारणों से आज प्रसारण देर से संक्षिप्त रूप से कर रहा हूँ .......
induravisinghj
तुझे याद करते -करते कोई ग़ज़ल मैं लिखूँ
तेरे साथ गुज़रा लम्हा हर एक पल मैं लिखूँ.
ये दौर किस तरह का,कौन बताएगा यहाँ
हर शख्स की बदलती हुई शकल मैं लिखूँ।
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आशा सक्सेना
कई मुखौटे लगे या नकाब से ढके
असली चहरे पहचाने नहीं जाते
दोहरा जीवन जीते लोग
व्यवहार भी अलग अलग
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उदय वीर सिंह
किसने कहा कवि मुझे
कविता मुझसे अनजान रही
अभिव्यक्ति बस रोक न पाया
पाकर नाम अनाम रही -
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Shalini Kaushik
दरिया-ए-जिंदगी की मंजिल मौत है ,
आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है .
बाजीगरी इन्सां करे या कर ले बंदगी ,
मुक़र्रर वक़्त पर मौजूद मौत है .
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पुरुषोत्तम पाण्डेय
मानू अब बड़ा हो गया है. वह मानू से मनोहर हो गया है. उसे याद है कि बचपन से लगभग हर साल गर्मियों की छुट्टियाँ होते ही वह मम्मी के साथ ननिहाल चला आता था.
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आस्था
राजेंद्र शर्मा
विश्वास जब श्रध्द्दा के वसन धारण कर लेती है
तो आस्था बन जाती है
हजारो आस्थाये जब प्रतिमा पर एकत्र हो जाती है
तो प्रतिमा प्रतिमा नहीं रह जाती
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kshama
पार्श्वभूमी बनी है , घरमे पड़े चंद रेशम के टुकड़ों से..किसी का लहंगा,तो किसी का कुर्ता..यहाँ बने है जीवन साथी..हाथ से काता गया सूत..चंद, धागे, कुछ डोरियाँ और कढ़ाई..इसे देख एक रचना मनमे लहराई..
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मदन मोहन सक्सेना
प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है प्यार से
दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से
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इसी के साथ मुझे इजाजत दीजिये मिलते हैं अगले गुरुवार को आप सभी के चुने हुए प्यारे लिंक्स के साथ. शुभ विदा शुभ दिन.