राजेन्द्र की ओर से आप सबको सादर प्रणाम . ब्लॉग प्रसारण में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. लीजिये प्रस्तुत हैं मेरे द्वारा चुने हुए आप ही के कुछ रचनाओं के कुछ खास लिंक्स ....
कल्पना रामानी जी
यह बारिशों का मौसम, कितना हसीन है!
धरती गगन का संगम, कितना हसीन है
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दिगम्बर नासवा जी
अपने मन की बातें तब तब बोलती थी
यादों की खिड़की जब अम्मा खोलती थी
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नागेश्वर सिंह जी
आजकल पासबुक ले जाकर बैंक से पैसे निकालने के दिन लद गए हैं. डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड का जमाना आ गया है ...
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सुज्ञ जी
एक संन्यासी एक राजा के पास पहुंचा। राजा ने उसका खूब आदर-सत्कार किया। संन्यासी कुछ दिन वहीं रूक गया। राजा ने उससे कई विषयों पर चर्चा की और अपनी जिज्ञासा ......
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रचना बजाज
आज, अभी ये पल है अपना,
क्या होगा कल किसे पता है..
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ब्रह्मा मुख कमल से शिवभगवान उवाच
विरेन्द्र कुमार शर्मा जी
मैं ज्योतिर्लिन्गम हूँ .मेरा अप भ्रंश रूप शिवलिंग कहलाता है वही मेरा प्रतीक चिन्ह है .मैं परम ज्योति (प्रकाश )हूँ
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कालीपद प्रसाद जी
पढाई समाप्त कर नौकरी के लिए
घर छोड़ जब शहर के लिए था निकलना ....
मेरी माँ ने मुझ से कहा बेटा!
एक बात मेरी तुम गाँठ बांध रखना।
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अन्नपुर्णा जी
कुछ परछाइयाँ आडी तिरछी सी ,
कुछ लम्बी और पतली सी ।
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राधारमन जी
अपने शरीर को वांछित आकार देने की ख्वाहिश में लोग तमाम जतन कर रहे हैं। जिमनेजियम का चलन भी हाल के सालों में काफी बढ़ा है।
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बता है मयंक भारद्वाज जी
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इस के साथ अब आज्ञा दीजिये फिर मिलेंगे अगले हफ्ते कुछ नये रचनाओं के लिंकों के साथ,तब तक के लिए जय राम जी की।
प्यार बिना नहि जिन्दगी,जीवन मृतक समान,
सतरंगी बनकर रहे, करे प्यार का मान।