नमस्कार, मैं नीरज कुमार 'नीर' आप सबका स्वागत करता हूँ
ब्लॉग प्रसारण के सोमवार के अंक में. उम्मीद करता हूँ, आपको मेरे चुने गए
लिंक्स पसंद आयेंगे.
जवाहर
ग्रीष्म शुष्क लागत बदन,
जागत हैं अति पीर मनुज,
पशु, खगवृन्द सभी,
खोजत शीतल नीर तप्त किरण मध्याह्न अति,
तपस लगत चहुओर.
गरम पवन लागे बदन,
अगन लगे अति घोर.
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एम.आर.अयंगर
हाथ लिए राखी,
लाँघ चली तुम,
जिस लाश को,
जिस कलाई को थामने,
थी भाग रही तुम,
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साधना वैद
कहो जीवन के सफर की इस लंबी रात में
चहुँ ओर फैले घनघोर अँधेरे को सहेज कर रखूँ
या फिर बियाबान जंगल में
कभी-कभार जुगनुओं से टिमटिमाते दिख जाते रोशनी के
दो चार कतरों को सहेज कर रखूँ …?
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सुलोचना वर्मा
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भारती दास
सावित्री- सत्यवान की,
है ये कथा पुरानी सदियों से बस सुनती आयी ,
अनमिट प्रेम कहानी मद्र-देश के राजा अश्वपति थे,
क्षमाशील संतान रहित थे
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रंजना भाटिया
कुछ लफ्ज़ ज़िन्दगी के सिर्फ खुद से ही पढ़े जाते
हैं
वही लफ्ज़ जो दिल की गहराइयों में
दबे गए कभी सोच कर कभी भूल से
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प्रवीण पाण्डेय
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गिरीश बिल्लोरे”मुकुल”
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ए के राजपूत
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रचना दीक्षित
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और अब इसी के साथ इजाजत दीजिये, फिर मुलाकात होगी अगले सोमवार को कुछ रोचक, नए, और मजेदार लिंक्स के साथ. धन्यवाद. |